धरती के दामन मे कल
मचलती रही चांदनी रात भर
कभी सितारों को चूमती
तो कभी बादलों से खेलती
कभी वादियों मे दरिया के साथ बह जाती
तो कभी पेङों की शाखाओं से लिपट जाती
फ़िर कभी पर्वतों की चोटियों पे
फ़ुदकती चली गयी चांदनी रात भर
कभी रजनीगंधा की सुगंध मे लिपट जाती
तो कभी गुलाबों की महक से बहक जाती
कभी हवाओं पे सवार हो कर यूं ही घूमती
तो कभी ओस की बूंद मे छुप कोंपलें चूमती
फ़िर कभी सागर की लहरों पे फ़िसलती
चली गयी चांदनी रात भर
कभी राहगिरों को रास्ता दिखाती
तो कभी गुपचुप कोने मे बैठ जाती
कभी बिछुङे दिलों को मिलाती
तो कभी बिछुङे प्रेमियों को रुलाती
फ़िर भोर के सूरज को चूमने की लालसा मे
बस यूं ही जागती रही चांदनी रात भर
Friday, January 2, 2009
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