जीवन आंसूओं और मुस्कराहाटों का
एक गठबन्धन है
कभी पर्वतों सी उंचाईयां
तो कभी गहरी घाटियों का संगम है
इस सफ़र का हर लम्हा
नयी चुनौती भरा होता है
मिलते हैं फूल कभी गुलिस्तां के
तो कभी नागफ़नी (कैक्टस) के
जंगलों से गुजरना होता है
घबरा कर जीवन की वास्तविकता से
जो हार जायेगा
वक्त के अंधेरों मे वो कहीं विलीन हो जायेगा
पीस डालेगा जो चट्टानों को अपनी हथेलियों से
इस दुनियां मे
सिकन्दर वही कहलायेगा
Saturday, September 18, 2010
Friday, September 17, 2010
भविष्य
दिन भर चमकने के बाद
सूरज की किरणें मंद हो गयी थी
रोशनी की तलाश मे पेङों की परछाईयां
कहीं खो गयी थी
अपनी जीर्ण काया मे खुद को समेटे
ढलते सूरज से बेखबर
वो अकेला, गुमसुम, चुपचाप
रेत की पगडंडी पर चल रहा था
शायद भीतर उठे किसी अन्तर्द्वन्द से लङ रहा था
शाश्वत सच्चाई को नकारना मुश्किल होता है
शाम के बाद रात का आना निश्चित होता है
क्षितिज की ओर बढते उसके कदम देख कर
एकाएक एक ख्याल मेरे मन मे उभर आता है
वक्त की गर्द तले दबी उस जर्जर काया मे
मुझे उसका वर्तमान नही
अपना भविष्य नजर आता है
सूरज की किरणें मंद हो गयी थी
रोशनी की तलाश मे पेङों की परछाईयां
कहीं खो गयी थी
अपनी जीर्ण काया मे खुद को समेटे
ढलते सूरज से बेखबर
वो अकेला, गुमसुम, चुपचाप
रेत की पगडंडी पर चल रहा था
शायद भीतर उठे किसी अन्तर्द्वन्द से लङ रहा था
शाश्वत सच्चाई को नकारना मुश्किल होता है
शाम के बाद रात का आना निश्चित होता है
क्षितिज की ओर बढते उसके कदम देख कर
एकाएक एक ख्याल मेरे मन मे उभर आता है
वक्त की गर्द तले दबी उस जर्जर काया मे
मुझे उसका वर्तमान नही
अपना भविष्य नजर आता है
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