कोरे कागज के टुकङे पर
यूं ही जब कुछ लकीरें खींचने लगता हूं
तो एक तस्वीर सी बनने लगती है
कागज के सूने चेहरे पर धीरे धीरे
तुम्हारी छवि उभरने लगती है
आसमां से जब टपकती
बारिस की बूंदे देखता हूं
तो हर बूंद मे तुम्हारा ही चेहरा ढूंढता हूं
बादलों के रथ पर बैठी तुम
बिजलियों की रोशनी मे नजर आती हो
फ़िर इन्द्रधनुष की सिढियों से
धीमे धीमे उतर कर तुम
जमीं पर मेरे पहलू मे सिमट जाती हो
फ़ूलों पर मंडराते भवरों की गुनगुनाहट मे
सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम सुनाई देता है
हर फ़ूल के चेहरे मे मुझे
सिर्फ़ तुम्हारा ही चेहरा दिखाई देता है
बहुत देर तक छुपाये रखा ये राज़
मैने अपने सीने मे
आज जमाने के सामने इज़हार करता हूं
हां, मैं तुम्हे अपनी रुह से भी ज्यादा प्यार करता हूं
Tuesday, August 26, 2008
Monday, August 18, 2008
रात भर
मेरी बाहों मे लिपटी
मेरे सीने मे अपना सर छुपाये
मेरे दिल की धङकनों के साथ-साथ
गुनगुनाती रही
तुम रात भर
कभी खामोश रही
कभी मुस्करायी
कभी नटखटी आंखों से देखा मुझे
फ़िर कभी मेरे बालों मे
ऊंगलियां फ़िराती रही
तुम रात भर
खामोशी से खफ़ा होकर
जब मैने नाम पुकारा तुम्हारा
धीमे से अपनी ऊंगलियां
रख दी तुमने मेरे होठों पर
फ़िर दीवानो की तरह बार बार
चूमती रही वो रेश्मी ऊंगलियां
तुम रात भर
मेरे सीने मे अपना सर छुपाये
मेरे दिल की धङकनों के साथ-साथ
गुनगुनाती रही
तुम रात भर
कभी खामोश रही
कभी मुस्करायी
कभी नटखटी आंखों से देखा मुझे
फ़िर कभी मेरे बालों मे
ऊंगलियां फ़िराती रही
तुम रात भर
खामोशी से खफ़ा होकर
जब मैने नाम पुकारा तुम्हारा
धीमे से अपनी ऊंगलियां
रख दी तुमने मेरे होठों पर
फ़िर दीवानो की तरह बार बार
चूमती रही वो रेश्मी ऊंगलियां
तुम रात भर
मेरी तन्हाई
चेहरे पर बर्फ़ीली मुस्कान लिये
काली रात का बाना ओढे
अपनी ठन्डी बाहों मे लपेट कर
मुझे अपना साथी बना लेती है
मेरी तन्हाई
मेरी सफ़ेद आंखो से
बहती खून की धार देख कर
बिलख उठती है वो
फ़िर रख कर अपने
सर्द होठ मेरी पलकों पर
मेरे साथ रोने लगती है
मेरी तन्हाई
दुनिया से दूर
रिश्तों से बेखबर होकर
जब रुह पर लगे
ज़ख्मों को टटोलता हूं कभी
अपनी मुलायम उंगलियों से
सहला कर मेरे जख्मों को
मेरी दवा बन जाती है
मेरी तन्हाई
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