Tuesday, August 26, 2008

इज़हार

कोरे कागज के टुकङे पर
यूं ही जब कुछ लकीरें खींचने लगता हूं
तो एक तस्वीर सी बनने लगती है
कागज के सूने चेहरे पर धीरे धीरे
तुम्हारी छवि उभरने लगती है

आसमां से जब टपकती
बारिस की बूंदे देखता हूं
तो हर बूंद मे तुम्हारा ही चेहरा ढूंढता हूं
बादलों के रथ पर बैठी तुम
बिजलियों की रोशनी मे नजर आती हो
फ़िर इन्द्रधनुष की सिढियों से
धीमे धीमे उतर कर तुम
जमीं पर मेरे पहलू मे सिमट जाती हो

फ़ूलों पर मंडराते भवरों की गुनगुनाहट मे
सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम सुनाई देता है
हर फ़ूल के चेहरे मे मुझे
सिर्फ़ तुम्हारा ही चेहरा दिखाई देता है

बहुत देर तक छुपाये रखा ये राज़
मैने अपने सीने मे
आज जमाने के सामने इज़हार करता हूं
हां, मैं तुम्हे अपनी रुह से भी ज्यादा प्यार करता हूं

Monday, August 18, 2008

रात भर

मेरी बाहों मे लिपटी
मेरे सीने मे अपना सर छुपाये
मेरे दिल की धङकनों के साथ-साथ
गुनगुनाती रही
तुम रात भर


कभी खामोश रही
कभी मुस्करायी
कभी नटखटी आंखों से देखा मुझे
फ़िर कभी मेरे बालों मे
ऊंगलियां फ़िराती रही
तुम रात भर


खामोशी से खफ़ा होकर
जब मैने नाम पुकारा तुम्हारा
धीमे से अपनी ऊंगलियां
रख दी तुमने मेरे होठों पर
फ़िर दीवानो की तरह बार बार
चूमती रही वो रेश्मी ऊंगलियां
तुम रात भर

मेरी तन्हाई



चेहरे पर बर्फ़ीली मुस्कान लिये
काली रात का बाना ओढे
अपनी ठन्डी बाहों मे लपेट कर
मुझे अपना साथी बना लेती है
मेरी तन्हाई


मेरी सफ़ेद आंखो से
बहती खून की धार देख कर
बिलख उठती है वो
फ़िर रख कर अपने
सर्द होठ मेरी पलकों पर
मेरे साथ रोने लगती है
मेरी तन्हाई


दुनिया से दूर
रिश्तों से बेखबर होकर
जब रुह पर लगे
ज़ख्मों को टटोलता हूं कभी
अपनी मुलायम उंगलियों से
सहला कर मेरे जख्मों को
मेरी दवा बन जाती है
मेरी तन्हाई