Wednesday, September 17, 2008

न जाने कब

चलते चलते
न जाने कब तुम्हारी राहें
मेरी राहों से जुङ गयी
एक अजनबी बन कर मिली थी तुम
न जाने कब
मेरी हमसफ़र बन गयी

न जाने कब लपेट लिया
तुमने अपनी मुस्कराहटों मे
बना कर मुझे अपनी लवों की लालिमा
न जाने कब बसा लिया तुमने
अपनी आंखों मे
बना कर मुझे अपने काजल की कालिमा

न जाने कब पिघल कर मैं तुम्हारी बाहों मे
बन गया तुम्हारे सांसों की गरमाहट
न जाने कब छू कर तुम्हारे सीने की धङकनें
बन गया मैं तुम्हारे प्यार की चाहत
न जाने कब मैं तुम्हारी महोब्बत मे खो गया
न जाने कब मैं तुम्हारा हो गया

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