Thursday, October 16, 2008

सपनों से प्यार

कभी सितारों के बीच
चमकते चांद को एक टक निहारता हूं,
कभी पलकें मूंद कर
तुम्हारी तस्वीर दिल मे उतारता हूं.
कभी शबनम मे भीगी चान्दनी मे
तुम्हारी परछाईयां दिखाई देती हैं,
कभी पत्तों की खङखङाहट मे
तुम्हारे आने की आहटें सुनाई देती हैं.

अपने होठों की कोरों मे उंगली दबाये
तुम दबे पांव आ मेरे सिरहाने बैठ जाती हो,
नींद से भरी मेरी पलकों को
अपने ओस से होठों से छुआ देती हो.

तुमसे दूर अब इस अकेलेपन मे
मेरा अस्तित्व तुमसे जुङ गया है,
जब से रहने लगी हो तुम मेरे सपनों मे
मुझे सपनो से प्यार हो गया है.

3 comments:

hindustani said...

aap bhoot aachi kavita likte hai.
mere blog per padhariye.

Anonymous said...

उम्मीद है कभी आपके सपने वास्तविकता मे बदल जायेगें जब आप दोनो की दूरी खतम हो जायेगी. कविता अच्छी लगी.

सुनीता शानू said...

आमीन...आकाश जी क्या सचमुच आपको कुछ हो गया है? क्या ज्योति जी सही कह रही हैं?

मेरी शुभकामनाएं है आपकी उनके साथ...