पैरों पर पंख लगाये
मुझसे आंखें चुराता
मेरे करीब से दबे पांव
गुजरता चला जा रहा था वक्त
छुपा कर लाखों भेद अपने सीने मे
जाने कहां अनन्त मे विलीन
हुआ चला जा रहा था वक्त
मैने पलक उठा कर देखा
मुस्करा कर वक्त को
पास से जाते देखा
उसके भावहीन चेहरे पर
न कोई मुस्कराहट थी न कोई गम
न मुझसे बिछङने की वेदना थी
न कोई रंज
मेरे वर्तमान का प्रतिबिम्ब
अपनी अदृश्यी आंखों मे उतार
वो चला जा रहा था
कही मुझसे दूर
मैं हतप्रत सा खङा
देखता रहा वक्त को
लम्हा लम्हा कर
खुद से जुदा होते
और इन्तजार करता रहा
उन लम्हों के लौट आने का
जो डूब गये थे कहीं काल के अथाह समन्दर मे
फ़िर कभी न लौट आने के लिये
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2 comments:
आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये
कितना दर्द है इसमे...
अच्छा अब बहुत दिन हुए कोई और रचना तो पोस्ट कीजिये...:(
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