Wednesday, January 28, 2015

तुम्हारी यादें

तुम्हारी यादें कभी कभी अब भी चली आती हैं 
रात की ख़ामोशी में दबे पांव आकर 
बिना कुछ कहे 
बस चुपचाप मेरे सिरहाने बैठ जाती हैं 
बैरागी बन गए वो लम्हे 
मेरे दिल को थपथपाते हैं ऐसे 
राह भूला कोई राहगीर 
किसी अजनबी का दरवाजा खटखटाता हो जैसे 
शाम के  धुंधलके में 
पेड़ों की कतारों के पीछे से निकल कर तुम्हारी  यादें 
बिना कुछ बोले मेरे साथ हो जाती हैं 
उस सुनसान लम्बी सड़क पर मेरा एकाकीपन मिटाने 
कुछ देर को मेरी साथी बन जाती है 
बनजारों सी दिशाहीन भटकती तुम्हारी यादें 
जब  कभी मुझे अकेला पा लेती हैं 
घेरने  के इरादे से  मुझे अपनी बाहों मे 
अनायास बस कभी कभार 
अब भी मेरे पास चली आती हैं