तुम्हारी यादें कभी कभी अब भी चली आती हैं
रात की ख़ामोशी में दबे पांव आकर
बिना कुछ कहे
बस चुपचाप मेरे सिरहाने बैठ जाती हैं
बैरागी बन गए वो लम्हे
मेरे दिल को थपथपाते हैं ऐसे
राह भूला कोई राहगीर
किसी अजनबी का दरवाजा खटखटाता हो जैसे
शाम के धुंधलके में
पेड़ों की कतारों के पीछे से निकल कर तुम्हारी यादें
बिना कुछ बोले मेरे साथ हो जाती हैं
उस सुनसान लम्बी सड़क पर मेरा एकाकीपन मिटाने
कुछ देर को मेरी साथी बन जाती है
बनजारों सी दिशाहीन भटकती तुम्हारी यादें
जब कभी मुझे अकेला पा लेती हैं
घेरने के इरादे से मुझे अपनी बाहों मे
अनायास बस कभी कभार
अब भी मेरे पास चली आती हैं
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