कुछ मीठी
कुछ मुस्कराती
कुछ दर्दीली
कुछ रुलाती
कुछ घावों सी रिसती
कुछ घावों पर मरहम लगाती
तुम्हारी स्मृतियां
कविताओं के छंदों मे खोई
किताबों तले फूलों मे संजोई
पेङों की कतारों पर चिपकी
वर्षाती हवाओं मे लिपटी
सितारों सी टिमटिमाती
चांदनी मे नहाती
तुम्हारी स्मृतियां
अपने तन्हा पलों मे मैं खो जाता हूं
तुम्हारी स्मृतियों मे
तराशता हूं एक-एक कर
सहलाता हूं
चूमता हूं प्रेमिका की भांति
सीने से लगाता हूं
शायद इसीलिये
तुम्हारी स्मृतियों ने मुझे अपना लिया है
मेरे दिल मे अपना घर बना लिया है
जो तुम ना कर पायी कभी
तुम्हारी स्मृतियों ने कर दिया
बंजर से मेरे जीवन को
तुम्हारे प्यार से भर दिया
Friday, August 26, 2011
Monday, August 22, 2011
गलती
जाने किस भ्रम मे खो बैठा था
सपनों को सच्चाई समझ बैठा था
ढके बैठा था जिन जख्मों को एक जमाने से
आज तुमने उनको फ़िर से उभार डाला
जो राहें जाती हैं वीरानों को
उन्ही राहों पर मुझे तुमने ढकेल डाला
गम ना होता गर तुम हमसफ़र ना बन पाती
चली जाती मगर
ऐसे तो ना जाती
ना था कोई रिश्ता दिल का फ़िर भी
दिल तुम्हे देने की गलती कर बैठा था
जाने क्यों तुम्हे अपना बनाया था
जाने क्यों मैं तुम्हे अपना समझ बैठा था
सपनों को सच्चाई समझ बैठा था
ढके बैठा था जिन जख्मों को एक जमाने से
आज तुमने उनको फ़िर से उभार डाला
जो राहें जाती हैं वीरानों को
उन्ही राहों पर मुझे तुमने ढकेल डाला
गम ना होता गर तुम हमसफ़र ना बन पाती
चली जाती मगर
ऐसे तो ना जाती
ना था कोई रिश्ता दिल का फ़िर भी
दिल तुम्हे देने की गलती कर बैठा था
जाने क्यों तुम्हे अपना बनाया था
जाने क्यों मैं तुम्हे अपना समझ बैठा था
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