Monday, August 22, 2011

गलती

जाने किस भ्रम मे खो बैठा था
सपनों को सच्चाई समझ बैठा था
ढके बैठा था जिन जख्मों को एक जमाने से
आज तुमने उनको फ़िर से उभार डाला
जो राहें जाती हैं वीरानों को
उन्ही राहों पर मुझे तुमने ढकेल डाला
गम ना होता गर तुम हमसफ़र ना बन पाती
चली जाती मगर
ऐसे तो ना जाती
ना था कोई रिश्ता दिल का फ़िर भी
दिल तुम्हे देने की गलती कर बैठा था
जाने क्यों तुम्हे अपना बनाया था
जाने क्यों मैं तुम्हे अपना समझ बैठा था

No comments: