Monday, December 30, 2013

पीठ का घाव

जब तुम बियांवान जंगल में  अकेले भटक रही थी
मैं तुम्हारा साथी बना
और खतरों से दूर ले आया
जब तुम्हारी नाव उफनती नदी में हिचकोले खा रही थी
मैं तुम्हारी पतवार बना
और किनारे ले आया
जब तुम अंधेरो से घिर गयी थी
मैं तुम्हारा दीपक बना
और रोशनी में ले आया
जब तुम रेतीली आंधी में अंधिया गयी थी
मैं तुम्हारा सहारा बना
और आंधी से टकराया
जब भी तुमने मुझे पुकारा
मैं जहां भी रहा
तुमने मुझे अपने नजदीक पाया
उस समर्पण का तुम्हारे लिए कोई अर्थ नहीं था
अब ये बात खुद को कैसे समझाऊ
दिल के घाव तो शायद समय के साथ भर जायेंगे
मगर पीठ पर लगे घाव पर बताओ कौन सी मरहम लगांऊ       

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