नही, तुम मन की पीडा नही समझती
रुह पर लगे घाव कितने गहरे होते हैं
इसकी व्यथा नही समझती
हर बार जब मैं जीना चाहता हूं
तुम मुझ से जिंदगी छीन लेती हो
मुस्कराहटों की जगह
मेरी सांसों मे आहें घोल देती हो
रुह पर लगे घाव कभी दिखाई नही देते
रिसते रहतें हैं भीतर ही भीतर
मगर कभी नही भरते
मेरी वेदनाऒं का एहसास
शायद तुम्हे इसलिये नही होता
क्योंकि दर्द से बिलखते हुये भी
मैं कभी मुस्कराना नही छोडता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment