चुलबुलाते बचपन की देहलीज लांघ कर
अभी उसने यौवन की चौखट पर था पांव रखा
खो गयी अपने नवनीत प्रेम की गोद में
बन गयी थी वो अपने प्रियतम की प्रेम सखा
नियति को शायद उसकी खुशियां नहीं भायी
धो दिया उसकी मांग का सिंदूर
अभी तो उसके हाथों मेहंदी भी ना सूखने पाई
समाज ने उतार कर सुहाग जोड़ा उसका
ढक दिया काले कपड़े से
कल सुहागन थी
आज विधवा कहलायी
नोच लिए उसके पैरों से घुंघरू
तोड़ डाली हाथों की चूड़ियां
धकेल दिया उसे विषाद के अंधे कमरे में
पहना कर पैरों में रिवाजों की बेड़ियां
अंगारों पर बैठ कर काटना होगा शेष जीवन अब
होठों पर खेलती मुस्कान अब कभी लौट कर नहीं आएगी
कहने को तो जिंदा रहेगी
मगर अपनी जिंदगी वो अब कभी जी नहीं पायेगी
धिक्कार है ऐसे समाज पर
जिसमे रक्षक ही भक्षक बन जाता है
प्रताड़ित करता है अपनी बेक़सूर बेटियों को
छीन कर उनसे जीने का हक़
और धकेल देता है उन्हें कुरीतियों की भट्टी मे
तिल तिल कर जिंदा जल जाने के लिए
अभी उसने यौवन की चौखट पर था पांव रखा
खो गयी अपने नवनीत प्रेम की गोद में
बन गयी थी वो अपने प्रियतम की प्रेम सखा
नियति को शायद उसकी खुशियां नहीं भायी
धो दिया उसकी मांग का सिंदूर
अभी तो उसके हाथों मेहंदी भी ना सूखने पाई
समाज ने उतार कर सुहाग जोड़ा उसका
ढक दिया काले कपड़े से
कल सुहागन थी
आज विधवा कहलायी
नोच लिए उसके पैरों से घुंघरू
तोड़ डाली हाथों की चूड़ियां
धकेल दिया उसे विषाद के अंधे कमरे में
पहना कर पैरों में रिवाजों की बेड़ियां
अंगारों पर बैठ कर काटना होगा शेष जीवन अब
होठों पर खेलती मुस्कान अब कभी लौट कर नहीं आएगी
कहने को तो जिंदा रहेगी
मगर अपनी जिंदगी वो अब कभी जी नहीं पायेगी
धिक्कार है ऐसे समाज पर
जिसमे रक्षक ही भक्षक बन जाता है
प्रताड़ित करता है अपनी बेक़सूर बेटियों को
छीन कर उनसे जीने का हक़
और धकेल देता है उन्हें कुरीतियों की भट्टी मे
तिल तिल कर जिंदा जल जाने के लिए
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