Tuesday, August 26, 2008

इज़हार

कोरे कागज के टुकङे पर
यूं ही जब कुछ लकीरें खींचने लगता हूं
तो एक तस्वीर सी बनने लगती है
कागज के सूने चेहरे पर धीरे धीरे
तुम्हारी छवि उभरने लगती है

आसमां से जब टपकती
बारिस की बूंदे देखता हूं
तो हर बूंद मे तुम्हारा ही चेहरा ढूंढता हूं
बादलों के रथ पर बैठी तुम
बिजलियों की रोशनी मे नजर आती हो
फ़िर इन्द्रधनुष की सिढियों से
धीमे धीमे उतर कर तुम
जमीं पर मेरे पहलू मे सिमट जाती हो

फ़ूलों पर मंडराते भवरों की गुनगुनाहट मे
सिर्फ़ तुम्हारा ही नाम सुनाई देता है
हर फ़ूल के चेहरे मे मुझे
सिर्फ़ तुम्हारा ही चेहरा दिखाई देता है

बहुत देर तक छुपाये रखा ये राज़
मैने अपने सीने मे
आज जमाने के सामने इज़हार करता हूं
हां, मैं तुम्हे अपनी रुह से भी ज्यादा प्यार करता हूं

1 comment:

Anonymous said...

दिल मे महोब्बत छुपा कर रखने को ही हो प्यार कहते है...सुन्दर रचना है, बधाई

ज्योति