मैं तकता रहा उस रस्ते को
जिस पर आहिस्ता आहिस्ता कदमों से चल कर तुम
मेरी नजरों से औझल हो गयी थी
एक बुत सा खङा मैं सोचता रहा
शायद तुम लौट आओगी
मगर तुम नही आयी
मैं देखता रहा सूरज को
आहिस्ता आहिस्ता झील मे डूबते
और सोचता रहा
हमेशा की तरह
रात पङे तुम दबे पांव आओगी
धीमे से अपनी हथेलियों से
मेरी पलकें छुपा कर खिलखिलाओगी
रात की चादर मे लिपटा मैं
इन्तजार करता रहा
तुम्हारी हथेलियों के अहसास का
मगर तुम नही आई
शायद तुमने सब कुछ भुला दिया
मगर मेरे इन्तजार का अन्त ना हुआ
तुम्हारे दामन की खुशबू
अब भी जैसे हवाओं मे बसी हो
लगता है मानो तुम मेरे पास
बस यहीं कहीं हो
अपनी तन्हाई से बातें करता
इन्तजार करता रहता हूं मैं
उस पल का
जब तुम मेरे घर का दरवाजा खटखटाओगी
और तुम लौट आओगी
Tuesday, October 11, 2011
Monday, September 19, 2011
इन्सानियत
इन्सान और इन्सानियत
वो हंस कर बोला
मुश्किल है मिलाना
आज के इन्सानों मे
इन्सानियत खोज पाना
अब इन्सानो के दिल सूख कर
बंजर हो चुके हैं
जज्बाती रिश्ते कतरा-कतरा कर
मर चुके हैं
अब जनाजों को उठता देख कर
लोगों की आंखें नम नही होती
जलती इमारतें देख कर
होठों से उफ़ तक नही निकलती
लाशों के ढेर के पास से गुजर कर भी
किसी का खून नही खौलता है
क्योंकि अब इन्सानो की रगों मे
खून नही पानी दौङता है
आज का इन्सान खुदगर्जी की
गर्द तले दब गया है
इन्सानियत तो महज एक
किताबी शब्द बन रह गया है
कभी-कभी मुझे यूं लगता है जैसे
शैतान खुद उतर कर जमीं पर आ गया है
जो इन्सानों के साथ साथ उनकी
इन्सानियत भी खा गया है
वो हंस कर बोला
मुश्किल है मिलाना
आज के इन्सानों मे
इन्सानियत खोज पाना
अब इन्सानो के दिल सूख कर
बंजर हो चुके हैं
जज्बाती रिश्ते कतरा-कतरा कर
मर चुके हैं
अब जनाजों को उठता देख कर
लोगों की आंखें नम नही होती
जलती इमारतें देख कर
होठों से उफ़ तक नही निकलती
लाशों के ढेर के पास से गुजर कर भी
किसी का खून नही खौलता है
क्योंकि अब इन्सानो की रगों मे
खून नही पानी दौङता है
आज का इन्सान खुदगर्जी की
गर्द तले दब गया है
इन्सानियत तो महज एक
किताबी शब्द बन रह गया है
कभी-कभी मुझे यूं लगता है जैसे
शैतान खुद उतर कर जमीं पर आ गया है
जो इन्सानों के साथ साथ उनकी
इन्सानियत भी खा गया है
Friday, August 26, 2011
तुम्हारी स्मृतियां
कुछ मीठी
कुछ मुस्कराती
कुछ दर्दीली
कुछ रुलाती
कुछ घावों सी रिसती
कुछ घावों पर मरहम लगाती
तुम्हारी स्मृतियां
कविताओं के छंदों मे खोई
किताबों तले फूलों मे संजोई
पेङों की कतारों पर चिपकी
वर्षाती हवाओं मे लिपटी
सितारों सी टिमटिमाती
चांदनी मे नहाती
तुम्हारी स्मृतियां
अपने तन्हा पलों मे मैं खो जाता हूं
तुम्हारी स्मृतियों मे
तराशता हूं एक-एक कर
सहलाता हूं
चूमता हूं प्रेमिका की भांति
सीने से लगाता हूं
शायद इसीलिये
तुम्हारी स्मृतियों ने मुझे अपना लिया है
मेरे दिल मे अपना घर बना लिया है
जो तुम ना कर पायी कभी
तुम्हारी स्मृतियों ने कर दिया
बंजर से मेरे जीवन को
तुम्हारे प्यार से भर दिया
कुछ मुस्कराती
कुछ दर्दीली
कुछ रुलाती
कुछ घावों सी रिसती
कुछ घावों पर मरहम लगाती
तुम्हारी स्मृतियां
कविताओं के छंदों मे खोई
किताबों तले फूलों मे संजोई
पेङों की कतारों पर चिपकी
वर्षाती हवाओं मे लिपटी
सितारों सी टिमटिमाती
चांदनी मे नहाती
तुम्हारी स्मृतियां
अपने तन्हा पलों मे मैं खो जाता हूं
तुम्हारी स्मृतियों मे
तराशता हूं एक-एक कर
सहलाता हूं
चूमता हूं प्रेमिका की भांति
सीने से लगाता हूं
शायद इसीलिये
तुम्हारी स्मृतियों ने मुझे अपना लिया है
मेरे दिल मे अपना घर बना लिया है
जो तुम ना कर पायी कभी
तुम्हारी स्मृतियों ने कर दिया
बंजर से मेरे जीवन को
तुम्हारे प्यार से भर दिया
Monday, August 22, 2011
गलती
जाने किस भ्रम मे खो बैठा था
सपनों को सच्चाई समझ बैठा था
ढके बैठा था जिन जख्मों को एक जमाने से
आज तुमने उनको फ़िर से उभार डाला
जो राहें जाती हैं वीरानों को
उन्ही राहों पर मुझे तुमने ढकेल डाला
गम ना होता गर तुम हमसफ़र ना बन पाती
चली जाती मगर
ऐसे तो ना जाती
ना था कोई रिश्ता दिल का फ़िर भी
दिल तुम्हे देने की गलती कर बैठा था
जाने क्यों तुम्हे अपना बनाया था
जाने क्यों मैं तुम्हे अपना समझ बैठा था
सपनों को सच्चाई समझ बैठा था
ढके बैठा था जिन जख्मों को एक जमाने से
आज तुमने उनको फ़िर से उभार डाला
जो राहें जाती हैं वीरानों को
उन्ही राहों पर मुझे तुमने ढकेल डाला
गम ना होता गर तुम हमसफ़र ना बन पाती
चली जाती मगर
ऐसे तो ना जाती
ना था कोई रिश्ता दिल का फ़िर भी
दिल तुम्हे देने की गलती कर बैठा था
जाने क्यों तुम्हे अपना बनाया था
जाने क्यों मैं तुम्हे अपना समझ बैठा था
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