Monday, September 19, 2011

इन्सानियत

इन्सान और इन्सानियत
वो हंस कर बोला
मुश्किल है मिलाना
आज के इन्सानों मे
इन्सानियत खोज पाना

अब इन्सानो के दिल सूख कर
बंजर हो चुके हैं
जज्बाती रिश्ते कतरा-कतरा कर
मर चुके हैं
अब जनाजों को उठता देख कर
लोगों की आंखें नम नही होती
जलती इमारतें देख कर
होठों से उफ़ तक नही निकलती
लाशों के ढेर के पास से गुजर कर भी
किसी का खून नही खौलता है
क्योंकि अब इन्सानो की रगों मे
खून नही पानी दौङता है

आज का इन्सान खुदगर्जी की
गर्द तले दब गया है
इन्सानियत तो महज एक
किताबी शब्द बन रह गया है
कभी-कभी मुझे यूं लगता है जैसे
शैतान खुद उतर कर जमीं पर आ गया है
जो इन्सानों के साथ साथ उनकी
इन्सानियत भी खा गया है

1 comment:

Rakesh Kumar said...

बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने 'इंसानियत'
को ढूँढने का प्रयास किया है.

इन्सानियत की खोज में निराशा ही हाथ
लगती है,यह कहना सही है.पर एक न एक
दिन यह फिर से जी उठेगी मेरी तो यही
आशा है.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.