इन्सान और इन्सानियत
वो हंस कर बोला
मुश्किल है मिलाना
आज के इन्सानों मे
इन्सानियत खोज पाना
अब इन्सानो के दिल सूख कर
बंजर हो चुके हैं
जज्बाती रिश्ते कतरा-कतरा कर
मर चुके हैं
अब जनाजों को उठता देख कर
लोगों की आंखें नम नही होती
जलती इमारतें देख कर
होठों से उफ़ तक नही निकलती
लाशों के ढेर के पास से गुजर कर भी
किसी का खून नही खौलता है
क्योंकि अब इन्सानो की रगों मे
खून नही पानी दौङता है
आज का इन्सान खुदगर्जी की
गर्द तले दब गया है
इन्सानियत तो महज एक
किताबी शब्द बन रह गया है
कभी-कभी मुझे यूं लगता है जैसे
शैतान खुद उतर कर जमीं पर आ गया है
जो इन्सानों के साथ साथ उनकी
इन्सानियत भी खा गया है
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1 comment:
बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने 'इंसानियत'
को ढूँढने का प्रयास किया है.
इन्सानियत की खोज में निराशा ही हाथ
लगती है,यह कहना सही है.पर एक न एक
दिन यह फिर से जी उठेगी मेरी तो यही
आशा है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
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